उन तीनों से गहरा रिश्ता था।
उन से ही फिसल के गिरना
और सीखा गिर के सम्हलना भी।
उनके कांधों पर चढ़ना सीखा
और सम्हल के उतरना भी।
बचपन के खेलों के साथी वो थे।
बड़े नेक,बड़े दिलदार थे।
जब दीमक खाने लगी उनके
बदन को, सूख कर गिरने लगे
टूट कर बिखरने लगे।
वो जो बस देते ही रहे हमेशा
खतरा क्यों लगने लगे।
वो तीनों मुझसे बहुत पहले से थे
घर के पीछे वाले आंगन में।
जब उन्हें काटा गया तब
ना जाने क्यों इतना रोई थी मैं
पर उनकी जड़ें तो कहीं बहुत अंदर
गहराई तक फैली है मेरे मन में
कि वो तीन अमरूद के पेड़ तो
अब भी उतने ही हरे हैं मेरे ज़हन में।
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Again very nice one.
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bahot khoob !
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